आयुर्वेद में शांभवी मुद्रा का प्रभाव और योग में क्या महत्व है?
आयुर्वेद में शांभवी मुद्रा का प्रभाव: वर्तमान समय में टेक्नॉलॉजी के बढ़ने के साथ-साथ हमारा काम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे लैपटॉप, मोबाइल और कंप्यूटर आदि पर निर्भर हो गया है। इसी कारण हम घंटों तक इन इलेक्ट्रिक गैजेट्स के सामने बैठकर काम करते रहते हैं। बता दें कि इससे हमारे अंदर शारीरिक विकारों के साथ-साथ मानसिक अस्वस्थता भी उत्पन्न होती है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है। हालांकि जो लोग लंबे समय तक ऑनलाइन काम करते हैं, वे कुछ समय अपने स्वास्थ्य को भी देते हैं। कुछ लोग स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करते हैं तो कुछ लोग आयुर्वेद में बताए गए योग का अभ्यास करते हैं।
प्रतिदिन नियमित रूप से किए जाने वाले ये क्रियाकलाप हमें स्वस्थ रहने में मदद करते हैं। यदि आप भी लंबे समय तक युवा एवं स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे मुद्रा के बारे में, जो सिर्फ आपको शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहने में मदद करता है। इस मुद्रा का नाम है शांभवी मुद्रा, जिसका वर्णन आयुर्वेद में है।
1. शांभवी मुद्रा क्या है?
आयुर्वेद की दृष्टि से शांभवी मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है, जो मस्तिष्क को एकाग्र करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। योग जगत में भी इस मुद्रा का खास महत्व है। शांभवी मुद्रा एक ऐसी मुद्रा है जिसे हम मेडिटेशन के दौरान करते हैं। वर्तमान समय में दिनभर की भागदौड़ और काम के दबाव से आराम पाने के लिए मन एवं मस्तिष्क को एकाग्र करने की जरूरत होती है, जो शांभवी मुद्रा से संभव हो सकता है। इस मुद्रा में व्यक्ति की आंखें खुली रहती है लेकिन वास्तविकता यह है कि व्यक्ति की आंखें खुली होने के बावजूद उसे कुछ दिखाई नहीं देता। नियमित रूप से इसका अभ्यास करने से मन एवं मस्तिष्क दोनों को शांति पहुंचती है और व्यक्ति में एकाग्रता बढ़ती है।
2. शांभवी महामुद्रा सभी ध्यान प्रक्रियाओं से अलग क्यों है?
शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार के योग एवं मुद्राएं हैं, जिनमें शांभवी मुद्रा भी एक है। शांभवी मुद्रा सभी ध्यान प्रक्रियाओं से अलग है क्योंकि यह एक ऐसी मुद्रा है जो अचेतन मन को चेतना में ला सकती है। बता दें कि मां दुर्गा के कई नमो में से एक नाम शांभवी भी है। इस नाम का अर्थ अचेतन को भी चेतन करना है। देवी दुर्गा के नाम पर बना है शांभवी मुद्रा योग। शांभवी मुद्रा केवल मन को एकाग्रचित्त ही नहीं करती बल्कि हमारे शरीर के विभिन्न विकारों को नष्ट भी करती है।
3. ध्यान से महामुद्रा तक:
ध्यान शब्द का अर्थ है किसी एक जगह पर अपने मन को एकाग्र करना। जैसे कि एक बात पर लगातार विचार करना, एक मंत्र का लगातार उच्चारण करते रहना। इसे ही ध्यान कहा जाता है। अपने आप को मानसिक रूप से अपने आसपास हो रही घटनाओं या अपनी शारीरिक व्यवस्था में हो रही हलचल के प्रति सचेत होना भी ध्यान कहा जाता है।शांभवी इन सभी में से किसी भी प्रकार में नहीं आती है। इसलिए इसे आयुर्वेद में ‘महामुद्रा’ कहते हैं।
4. ऊर्जा की बर्बादी को रोकना:
शांभवी महामुद्रा, एक ताले की तरह कार्य करती है। आप जब किसी चीज को एक बक्से में बंद करके ताला लगा देते हैं तो आपकी ऊर्जा बाहर नहीं जा पाती है। ठीक इसी प्रकार शांभवी महामुद्रा में होता है। यह एक ऐसी क्रिया है जिसमें लोगों को पहले ही दिन से लाभ होने लगता है। शांभवी मुद्रा के अलावा कोई अन्य मुद्रा या योग इस प्रकार से लाभ नहीं पहुंचाती। सही प्रकार से नियमित तौर पर शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने पर आपके अंदर की ऊर्जा आपके अंदर रहती है और आप अधिक एकाग्र महसूस करते हैं।
5. व्यवस्था पर अत्यधिक बोझ:
पुराने ज़माने में अधिकतर जगहों पर शांति का माहौल मिलता था लेकिन आज के समय में शोर-गुल होता है और हमारे कानों को इस अत्यधिक बोझ को सहन पड़ता है। यही नहीं इसके अलावा यदि पहले जहां हमें कुछ अच्छा देखने के लिए सूर्योदय एवं सूर्यास्त का इंतजार करना पड़ता है, वहीं आज टीवी खोलते ही सब कुछ दिख जाता है। वर्तमान समय ऐसा है कि व्यक्ति आंखें बंद करके कुछ समय तक बैठ भी नहीं पाता। वह अपनी आंखों को सिर्फ तभी आराम देता है जब तक सोने के लिए ना जाए। इस प्रकार व्यवस्था पर अत्याधिक बोझ प्रतीत होता है। कम से कम 90 दिनों तक शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने से एक व्यक्ति में किसी साधारण व्यक्ति की तुलना में कई गुना ज्यादा कोर्टिसोल को जागृत करने की क्षमता हो जाती है।
6. शरीर में सूजन, बढ़ती उम्र का असर और तनाव को कम करने वाली:
नियमित रूप से शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में ऐसे तत्वों का विकास होता है जो सूजन को कम करते हैं। नियमित रूप से सिर्फ 90 दिनों तक शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने से आपकी मन कि शांति कई गुना बढ़ जाती है और आपका मस्तिष्क एकदम सक्रिय हो जाता है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से बढ़ती उम्र के कारण शरीर में होने वाली समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। शांभवी मुद्रा के जरिए आप डिप्रेशन जैसी बीमारी से भी खुद को दूर रख सकते हैं अर्थात यदि आप किसी बात से तनाव महसूस करें तो इस मुद्रा की मदद से अपने तनाव को कम कर सकते हैं।
हमें शांभवी मुद्रा का अभ्यास कब करना चाहिए?
शांभवी मुद्रा को शिव मुद्रा या भैरवी मुद्रा भी कहते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक शांभवी मुद्रा ऐसे समय पर करना चाहिए, जब हमारा पेट पूरी तरह से खाली हो। हमें शांभवी मुद्रा का अभ्यास खास तौर पर सुबह और शाम के समय यानी पूरे दिन में दो बार करना चाहिए। इससे अत्यधिक लाभ होता है। यदि आप दिन में 2 बार इस मुद्रा का अभ्यास करने में सक्षम नहीं हैं तो सिर्फ सुबह के समय इसका अभ्यास कर सकते हैं। चूंकि सुबह के समय में हमारा पेट खाली रहता है, इसलिए यह समय शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। हर दिन एक अभ्यास में 21 मिनट तक शांभवी मुद्रा का अभ्यास करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है।
निष्कर्ष:
वर्तमान समय में हमारे मन को एकाग्रता की बेहद आवश्यकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि शांभवी योग की मदद से हम अपने मन को एकाग्र कर लाभ प्राप्त कर सकें। आयुर्वेद में शांभवी मुद्रा का विस्तार में वर्णन किया गया है एवं इसके महत्व को बताया गया है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शांभवी मुद्रा बेहतर विकल्प है, जो हमारे मन को एकाग्र करने एवं अपने काम के प्रति अधिक ध्यान देने में मदद करती है। हम उम्मीद करते हैं आयुर्वेद में शांभवी मुद्रा से संबंधित यहां दी गई जानकारी आपके लिए फायदेमंद रही होगी। यदि आपको यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी शांभवी मुद्रा के लाभ की जानकारी प्राप्त कर सकें एवं इस मुद्रा से परिचित हो सकें।
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