देवी सरस्वती की कहानियां और हिंदू धर्म में फैलाए हुए झूठ

Hindu Goddess Saraswati | Images, Symbols, and Stories

हर साल बसंत पंचमी के दिन भारतवर्ष में सरस्वती देवी की पूजा की जाती है। देवी सरस्वती को ज्ञान और विवेक की देवी माना जाता है और विशेष कर विद्यार्थी जीवन में उनका अधिक योगदान रहता है।

हालांकि यह सत्य बात है की बाकी देवी देवताओं की तुलना में हमारे पुराणों में देवी सरस्वती के बारे में कम लिखा गया है। यहां तक कि हमें कुछ कहानियां ब्रह्मा जी के बारे में पता है पर सरस्वती देवी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

चूंकि 2024 में सरस्वती पूजा 14 फरवरी के दिन बसंत पंचमी को हो रही है, क्यों ना देवी सरस्वती की कहानियां को लेकर हम कुछ को साझा करें।

सरस्वती देवी का जन्म और ब्रह्मांड का निर्माण:

ब्रह्मांड के निर्माण से पूर्व त्रिदेवो ने अपने-अपने कार्य भार को संभाला और ब्रह्मा जी को संसार को रचने का कार्य दिया गया। ब्रह्मा जी ने शिवा जी की शक्ति से ब्रह्मांड की रचना की।( यह कहानी आगे सती और पार्वती के रूप में शिव के शक्ति से मिलन से जुड़ती है।)

ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना तो कर दी पर उन्हें अपने इस रचना में कई सारी कमियां नजर आई ‌। विशाल शून्य को हटाकर ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड में सब कुछ बना तो दिया पर वह सब कुछ मूक और शांत रहा।

ब्रह्मांड को संजीव बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल के जल से सरस्वती देवी को उत्पन्न किया। चार हाथों वाली यह देवी अपने दो हाथों में वीणा, एक हाथ में पुस्तक, और एक हाथ में माला धारण किए हुए थी।

देवी सरस्वती ने अपने वीणा से प्रथम संगीत का राग छेड़ा जिससे ब्रह्मांड में ध्वनि, स्वर, संगीत, बुद्धि, और जीवन का आरंभ हुआ।

माना जाता है कि जिस तिथि को यह घटना हुई थी वह बसंत पंचमी थी और इसीलिए वसंत पंचमी को देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

देवी सरस्वती का विवाह और मानव चक्र का आरंभ:

देवी सरस्वती और ब्रह्मा जी के बारे में उनके विवाह की कथा बड़ी प्रचलित है। सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण के अनुवादों में हमें सरस्वती और ब्रह्मा जी के विवाह की कहानी मिलती है। कहानी के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी अपने तपोबल से बनाया था।

जब ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की सुंदरता और बुद्धिमत्ता को देखा तो उन पर मोहित हो गए। उन्होंने उनसे विवाह करने का निश्चय किया मगर सरस्वती उन्हें अपने पिता के समान मानती थी इसलिए उन्हें मना कर वहां से भाग गई।

ब्रह्मा जी सरस्वती जी के पीछे स्वर्ग तक पहुंचे और अंततः विमर्श होकर सरस्वती को ब्रह्मा से विवाह करना पड़ा। इसके बाद सरस्वती और ब्रह्मा जी 100 वर्ष तक जंगल में रहे जहां उन्हें स्वयंभू और शतरूपा के नाम से जाना जाता है। इन्हीं से मानव चक्र की शुरुआत हुई।

इस कारण देवताओं में ब्रह्मा जी की बड़ी आलोचना हुई और उनका स्थान चीर-काल तक के लिए गिर गया।

यह कहानी बहुत प्रचलित है लेकिन हमें इस कहानी के भिन्न संस्करण अलग-अलग पुराणों में मिलते हैं जिसमें सरस्वती पुराण मत से पुराण प्रमुख है। हालांकि कई धर्मशास्त्र ज्ञात या मानते हैं ईस बे-मतलब की कहानी को मध्यकाल तथा अंग्रेजों के समय के दौरान लिखा गया था। क्योंकि संस्कृत उनकी अपनी भाषा नहीं थी इसलिए ऋग्वेद से कुछ श्लोक और मत्स्य  पुराण और सरस्वती पुराण में दिए गए प्रसंग को मिलाकर उन्होंने अपनी एक कहानी बना ली।

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उसे श्लोकों के बारे में हम अभी नीचे जानेंगे।

शाक्त परंपरा में लोग महाशक्ति की पूजा करते हैं और यह परंपरा स्त्री को पुरुष से अधिक महत्व देता है।  उनके उल्लेखों में सरस्वती और ब्रह्मा के विवाह का उल्लेख अलग है। इसके अनुसार तीन रहस्य है जिन्हें प्रधानिक, वैकृतिक, और मुक्ति रहस्य कहा गया है।

सरस्वती और ब्रह्मा जी के विवाह की कहानी हमें प्रधानिक रहस्य में मिलती है जहां विद्या की देवी सरस्वती को महालक्ष्मी की पुत्री माना गया है और यह सरस्वती विष्णु जी की बहन है। इन्हीं का विवाह ब्रह्मा जी के साथ हुआ है। ब्रह्मा जी की एक पुत्री भी है जिसका भी नाम सरस्वती है और इन सरस्वती का विवाह विष्णु जी के साथ हुआ है।

गौर करे कि सरस्वती (ब्रह्मा जी की पत्नी) को परा विद्या और सरस्वती (विष्णु जी की पत्नी) को सांसारिक ज्ञान की देवी कहा जाता है।

हालांकि शाक्त परंपराओं के अलावा इस तरह का जिक्र बहुत ही कम देखने को मिलता है।

कुल मिलाकर हम जब भी किसी भी पुराण को पढ़ते हैं तो उनमें हमें एक ऐसी शक्ति या ऐसे व्यक्ति का जिक्र मिलता है जो  त्रिदेवो और त्रिदेवियों से भी ऊपर है‌।  ब्रह्म पुराण में इसे परमब्रह्मा, विष्णु पुराण में इस महाविष्णु‌ और शिव पुराण में सदाशिव, और शाक्त परंपरा में महाशक्ति के नाम से जाना जाता है।

सरस्वती, लक्ष्मी, और पार्वती तीन शक्तियों विद्या, समृद्धि, और ऊर्जा का प्रतीक है। ब्रह्मा, विष्णु, और शिव जो कि सृजनकर्ता, संचालक, और संहारक का कार्य करते हैं। ये तीनों देवियां तीनों देवों की मूल शक्तियों को दर्शाती हैं। 

वेद और सरस्वती देवी की कहानियों से छेड़छाड़:

भारत जैसे विविधताओं के देश में बहु-संस्कृतियों को समझना सबके बस की बात नहीं है। इसी वजह से मध्यकाल और अंग्रेजों के समय में कई वेदों पुराणों के अनुवाद के समय ऐसी गलतियां की गई जो आज के समय में कहानी बनकर प्रचलित हो गई। चलिए ऐसे कुछ श्लोक के बारे में देखते हैं।

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वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हतीं मन:।
अकामां चकमे क्षत्त्: सकाम् इति न: श्रुतम् ॥

(श्रीमदभागवत् 3/12/28)

अर्थ-
वाणी स्वयंभू मनु की बेटी है जिसका मन मारा हुआ है। एक क्षत्रिय एक ऐसी स्त्री को चाहता है जो उसे नहीं चाहती है।

प्रजापतिवै स्वां दुहितरमभ्यधावत्
दिवमित्यन्य आहुरुषसमितन्ये
तां रिश्यो भूत्वा रोहितं भूतामभ्यैत्
तं देवा अपश्यन्
“अकृतं वै प्रजापतिः करोति” इति
ते तमैच्छन् य एनमारिष्यति
तेषां या घोरतमास्तन्व् आस्ता एकधा समभरन्
ताः संभृता एष् देवोभवत्
तं देवा अबृवन्
अयं वै प्रजापतिः अकृतं अकः
इमं विध्य इति स् तथेत्यब्रवीत्
तं अभ्यायत्य् अविध्यत्
स विद्ध् ऊर्ध्व् उदप्रपतत्

(एतरेय् ब्राहम्ण् 3/333)

अर्थ
विधाता या प्रजापति अपनी पुत्री के ऊपर मोहित हो गए और उनके पीछे भागे। उनकी पुत्री उनसे भाई खाकर स्वर्ग में गई और वहां देवताओं ने कहा की विधाता वह करते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। इस कारण उन्हें मार डालना चाहिए।
देवताओं ने बहुत सारे भयानक शरीरों को मिलाकर एक बड़ा शरीर बनाया और उस विधाता पर हमला कर दिया। विधाता के शरीर में एक बड़ा सा तीर लगा और वह वहीं घायल हो गए।

क्योंकि यह कहानी पुराणों में दी गई है और वेदों के कई हजारों वर्षों के बाद लिखी गई। इसका वास्तविक अर्थ हमें ऋग्वेद अथर्ववेद के श्लोक में मिलता है।

सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितौ संविदाने
येना संगच्छा उप मा स शिक्षात् चारु वदानि पितर: संगतेषु।।
(अथर्व वेद)

अर्थ
सभा और समिति प्रजापति की दो पुत्रियां हैं। सभा यानी कि ग्राम सभा और समिति यानी की प्रतिनिधि सभा, के सभासदो लिए राजा यानी प्रजापति पिता के समान है। यही सभाएं राजा का चुनाव भी करती हैं।
यद्यपि दोनों सभाएं राजा की पुत्री के समान है पर राजा का इन पर कोई अधिकार नहीं और राजा को हर कार्य करने से पहले इनसे सलाह लेनी चाहिए और इनकी पूजा करनी चाहिए।

पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्केन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो निषिंचन्
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन् ॥ (ऋगवेद -10/61/7)

अर्थ-

प्रजापति ने अपनी बेटी यानि प्रजा पर हमला कर दिया। प्रजा ने छेड़ दी क्रांति, राजा की हार हो गई फिर बड़े बुजुर्गों ने उस राजा को खर्चा पानी देकर बैठा दिया और दूसरा राजा चुना। सीधा-सा अर्थ ये कि राजा ने प्रजा से जबरदस्ती की, उसकी उसे सजा मिली।

सरस्वती देवी के नाम पर ही एक नदी का नाम सरस्वती कहा गया। इस सरस्वती नदी का उल्लेख हमें ऋग्वेद में मिलता है। यह कैसी नदी है जिसने सभ्यता, भाषा, ज्ञान, कला, और विज्ञान को जन्म दिया है। इन्हीं के किनारे भारत की सभ्यता ने बुद्धिमत्ता के महान आविष्कार किए।

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भारत की लुप्त सरस्वती नदी:

महाभारत के अनुसार यह सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे से निकलती है जिसे आदिबद्री कहा जाता है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण सरस्वती नदी आज लुप्त हो चुकी है।

निष्कर्ष:

भारतवर्ष में सांकेतिक रूप से फैली हुई कहानियां और उनके गलत अर्थ कई सारी अर्थपूर्ण कथाओ को तोड़-मरोड़ देते हैं। जरूरी है कि हम तथ्यों को जानकर फिर उनके अर्थ निकाले।

इस वर्ष और आगे आने वाले सभी वर्षों में मां सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे और आप अपने जीवन में विद्या के साथ उन्नति को प्राप्त हो।

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