हमारे सनातन धर्म के चार वेद एवं उनकी विशेषताएं
चार वेदों के नाम और विशेषताएं
ऋग्वेद – वेद का प्राचीनतम रूप है
सामवेद – गायन के लिए सबसे प्रारंभिक संदर्भ
यजुर्वेद – इसे प्रार्थनाओं का ग्रंथ भी कहा जाता है
अथर्ववेद – जादू और आकर्षण की किताब
प्राचीन काल से ही भारत अनेक लोगों के लिए ज्ञान का केंद्र रहा है।
कहा जाता है कि इस संसार के समस्त ज्ञान का उल्लेख चारों वेदों में किया गया है। इन वेदों में उपनिषदों, मंडलों, और बहुत कुछ में कई उप-विभाजन हैं। तो आज हम इन वेदों के बारे में संछेप में बात करने जा रहे हैं।
ऋग्वेद: यह वेंदो का सबसे पुराना रूप है और सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पाठ है। ‘ऋग्वेद’ शब्द का अर्थ ज्ञान की स्तुति है। इसमें 10 पुस्तकों या मंडलों में 10600 छंद हैं जो देवताओं, दर्शन, पारिवारिक जीवन और भगवान से प्रार्थना करने के मंत्रों के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं।
सामवेद: 1549 छंद हैं, सामवेद में दो उपनिषद हैं – छांदोग्य उपनिषद और केना उपनिषद। इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य कला का मूल माना जाता है और इसे मधुर मंत्रों का भंडार भी कहा जाता है। सामवेद के ग्रन्थ के तीन पाठ हैं जिसमें पहला है – कौथुमा,दूसरा रणयणीय और तीसरा जयमानिया। सामवेद संहिता एक पाठ के रूप में पढ़ने के लिए नहीं है, यह एक संगीत स्कोर शीट की तरह है जिसे अवश्य सुना जाना चाहिए।
यजुर्वेद: इसके दो प्रकार हैं – कृष्ण (काला/अंधेरा) और शुक्ल (श्वेत/चमकीला) कृष्ण यजुर्वेद में शुक्ल यजुर्वेद द्वारा व्यवस्थित और स्पष्ट छंदों का एक अनिर्धारित, अस्पष्ट, मोटे संग्रह है। यजुर्वेद की सबसे छोटी परत में विभिन्न उपनिषद शामिल हैं – बृहदारण्यक उपनिषद, ईशा उपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, कथा उपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद और मैत्री उपनिषद।
अथर्ववेद: यह वेद प्राचीन ऋषि अथर्वन और ज्ञान का एक तत्पुरुष यौगिक है । जीवन की दैनिक प्रक्रियाओं को इस वेद में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है। इसमें 730 भजन, 6000 मंत्र और 20 किताबें हैं। इसमें तीन प्राथमिक उपनिषद शामिल हैं – मुंडक उपनिषद, मंडुक्य उपनिषद और प्रश्न उपनिषद। इस वेद में भजन भी शामिल हैं जिनमें से कई आकर्षण और जादू मंत्र है | जो उस व्यक्ति द्वारा उच्चारण किए जाने के लिए होते थे जो कुछ लाभ पाना चाहता था |
Read More-ब्रह्म मुहूर्त: सफलता, स्वस्थ जीवन एवं स्वस्थ रिश्तों का रहस्य…